नागौर, राजस्थान: की मांड गायिकी को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने वाली लोकगायिका बेगम बतूल आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। बिना किसी औपचारिक शिक्षा, बिना गुरु और समाजिक विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी साधना से संगीत को भक्ति में बदल दिया। मुस्लिम होकर राम और कृष्ण के भजन गाना उनके लिए आसान नहीं था, लेकिन सुरों में रमी इस साधिका ने हर विरोध को अपने संगीत से जवाब दिया।
बेगम बतूल को 2025 में पद्मश्री, 2022 में नारी शक्ति पुरस्कार, 2024 में फ्रांस सीनेट भारत गौरव सम्मान, ऑस्ट्रेलिया संसद सांस्कृतिक सम्मान, 2021 में GOPIO अचीवर्स अवार्ड, और 2023 में राजस्थान गौरव सम्मान मिल चुका है। यह सब उन्होंने न तो पढ़ाई से पाया, न किसी ट्रेनिंग से, बल्कि सिर्फ रियाज़ और सच्चे समर्पण से पाया।
बेगम बतूल कहती हैं:
"भजनों में जो सुकून है, वो मुझे कहीं और नहीं मिला।"
उन्होंने बचपन में ही मंदिरों में गाना शुरू किया। लोगों के तानों के बावजूद, उन्होंने ठाकुरजी के भजन गाए। किसी गुरु के बिना, सिर्फ सुनकर और रियाज़ करके ही उन्होंने संगीत की बारीकियां सीखीं।
16 साल की उम्र में शादी के बाद संगीत का सपना अधूरा लगता था। लेकिन पति फिरोज खान ने उनका हौसला बढ़ाया और कहा –
"तुम्हारे सुरों में सच्चाई है, तुम गाओ।"
यही साथ उन्हें जयपुर के मोती डूंगरी मंदिर तक ले गया, जहाँ से उनका सफर शुरू हुआ।
बेगम बतूल ने अब तक 55 देशों में परफॉर्म किया।
पेरिस टाउन हॉल में बिना माइक ढोलक पर गाया, ट्यूनिशिया, इटली, अमेरिका, स्पेन में राजस्थानी लोकसंगीत की गूंज सुनाई।
"संगीत सीमाओं से बड़ा होता है," वह कहती हैं।
35 साल पहले अयोध्या गईं और मन में ठान लिया कि रामलला के मंदिर में भजन गाना है।
सालों बाद उनका सपना पूरा हुआ जब उन्हें राममंदिर में परफॉर्म करने का न्योता मिला।
"जब वहाँ गाया, तो लगा जैसे आत्मा को सुकून मिल गया।"
प्रधानमंत्री आवास पर नारी शक्ति पुरस्कार के दौरान नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा –
"कुछ सुनाइए।"
उन्होंने गणेश वंदना सुनाई, जिसे PM मोदी ने सोशल मीडिया पर शेयर भी किया।
उनका मानना है कि मोदी सरकार में क्षेत्रीय कलाकारों को नई पहचान मिली है।
2016 में एक फ्रांसीसी पर्यटक ने उन्हें राजस्थान में सुना और पेरिस बुलाया। तब से हर साल वह परिवार सहित वहां ‘होली महोत्सव’ मनाती हैं।
"भाषा नहीं समझते लोग, लेकिन सुरों में खो जाते हैं।"
धर्म को लेकर समाज में जब तनाव है, बेगम बतूल एक उम्मीद बनकर सामने आती हैं:
"राम और रहीम अलग नहीं हैं। मंच पर कोई नहीं पूछता मैं कौन हूं, सब सुर से जुड़ते हैं।"
बेगम बतूल की कहानी न केवल एक सांस्कृतिक प्रेरणा है, बल्कि यह समाज के लिए धर्मनिरपेक्षता, समानता और समरसता का जीता-जागता उदाहरण भी है।
मांड गायिकी को उनके सुरों ने नई उड़ान दी, और दुनिया ने जाना – राजस्थान के सुरों में कितनी ताक़त होती है।
All Rights Reserved & Copyright © 2015 By HP NEWS. Powered by Ui Systems Pvt. Ltd.