नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन कानून पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन केंद्र से जवाब तलब करते हुए अहम सवाल भी खड़े किए हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच ने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिमों को शामिल करने की अनुमति देने को तैयार है, जैसा कि नए वक्फ कानून में गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करने का प्रावधान है।
संसद से पारित वक्फ संशोधन कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी 5 अप्रैल को मिली थी और 8 अप्रैल से इसे लागू कर दिया गया। इसके खिलाफ अब तक 100 से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं। याचिकाकर्ताओं ने इसे मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप बताया है।
बुधवार को दो घंटे चली सुनवाई में कोर्ट ने कानून की वैधता पर फैसला सुरक्षित रखते हुए कुछ अहम टिप्पणियां कीं:
कपिल सिब्बल ने दलील दी कि नए संशोधन में वक्फ बोर्ड में अब हिंदू सदस्य भी होंगे, जो धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है।
CJI खन्ना ने पूछा कि यदि हिंदू ट्रस्टों में गैर-हिंदू सदस्य नहीं हो सकते, तो फिर मुस्लिम संस्थानों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति क्यों की जाए?
SG तुषार मेहता ने बताया कि वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन 1995 से ही अनिवार्य है।
कोर्ट ने 14वीं और 16वीं सदी की मस्जिदों और संपत्तियों का मुद्दा उठाया। कहा कि यदि इनका कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं है, तो इन्हें वक्फ मानने से इनकार करना विवाद को जन्म देगा।
केवल मुस्लिम वक्फ बना सकते हैं:
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह अनुचित और भेदभावपूर्ण है।
300 साल पुरानी संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन:
वक्फ डीड मांगना व्यावहारिक नहीं है।
गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड में शामिल करना:
संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन बताया गया।
विवाद की स्थिति में सरकारी अफसर जांच करेगा:
इसे असंवैधानिक करार दिया गया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ‘वक्फ बचाव अभियान’ शुरू किया है, जो 7 जुलाई तक चलेगा। 1 करोड़ हस्ताक्षर एकत्र कर प्रधानमंत्री को भेजे जाएंगे।
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