अजमेर, राजस्थान : राजस्थान के अजमेर स्थित प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को लेकर चल रहा विवाद अब हाईकोर्ट तक पहुँच गया है। दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे पर अंजुमन कमेटी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर, सिविल कोर्ट में चल रही सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की है।
इस विवाद की सुनवाई आज राजस्थान हाईकोर्ट में जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की एकलपीठ में हुई। याचिका अंजुमन सैयद जादगान, जो दरगाह से जुड़े खादिमों की प्रतिनिधि संस्था है, द्वारा दायर की गई थी।
याचिका में मांग की गई है कि दरगाह में मंदिर होने के दावे की सिविल कोर्ट में हो रही सुनवाई पर तुरंत रोक लगाई जाए, क्योंकि यह धार्मिक सौहार्द और सांप्रदायिक शांति को प्रभावित कर सकती है।
वहीं, इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने याचिका पर आपत्ति जताई। उनका तर्क था कि अंजुमन कमेटी एक संस्था है, न कि प्रभावित पक्ष। इसलिए उसे इस मामले में याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं है।
केंद्र सरकार की दलील है कि यह मामला सीधे तौर पर धार्मिक स्थल से जुड़ा है, इसलिए कोर्ट को पहले याचिका की वैधता पर विचार करना चाहिए, फिर अन्य पहलुओं पर।
गौरतलब है कि हाल ही में एक याचिका में दावा किया गया था कि अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पूर्व में एक शिव मंदिर थी। इस दावे के बाद सिविल कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई थी, जिससे विवाद गहराता गया।
इस पर दरगाह प्रबंधन और खादिम समुदाय ने कड़ा ऐतराज जताया और इसे इतिहास व आस्था पर हमला बताया।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद फिलहाल कोई अंतिम आदेश पारित नहीं किया है। अगली सुनवाई की तारीख जल्द तय की जाएगी, जिसमें कोर्ट यह तय करेगा कि सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए या नहीं।
अजमेर दरगाह जैसे ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों से जुड़े विवाद न केवल संवेदनशील होते हैं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे मामलों में कोर्ट का संतुलित रुख और निष्पक्ष सुनवाई ही स्थायी समाधान की ओर ले जा सकती है।
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