पटना, बिहार : बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भारतीय संस्कृति और समाज को लेकर एक अहम बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज की परंपरा टॉलरेंस यानी बर्दाश्त करने की नहीं, बल्कि वाद-विवाद और असहमति प्रकट करने की रही है।
राज्यपाल ने यह विचार एक शैक्षणिक कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए, जिसमें उन्होंने रामायण, गीता और उपनिषदों जैसे धर्मग्रंथों का उल्लेख कर भारतीय चिंतन परंपरा की व्याख्या की।
आरिफ मोहम्मद खान ने रामायण का उदाहरण देते हुए कहा,
“जब कैकेयी ने राम को वनवास भेजा और भरत को राज्य सौंपा गया, तो भरत ने उस निर्णय को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने दशरथ और अपनी मां कैकेयी दोनों से असहमति जताई। यह दर्शाता है कि हमारी संस्कृति में असहमति और तर्क-वितर्क का स्थान हमेशा से रहा है।”
राज्यपाल ने कहा कि भारत की आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपरा में वाद-विवाद और तर्क को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
उन्होंने कहा:
“गीता में अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच जो संवाद है, वह एक उत्कृष्ट वाद-विवाद का उदाहरण है। अर्जुन अपने संदेहों को व्यक्त करता है और श्रीकृष्ण उन्हें दूर करते हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि उपनिषदों में गुरु-शिष्य परंपरा के तहत प्रश्न पूछना और विचार-विमर्श करना भारतीय संस्कृति की नींव रही है।
राज्यपाल खान ने कहा,
“टॉलरेंस (सहनशीलता) की अवधारणा पश्चिमी समाजों से आई है, जहां लंबे समय तक धार्मिक मतभेदों को दबाया गया। जबकि भारत में हमेशा विचारों की विविधता को स्वीकारा गया और खुलकर चर्चा की गई।”
राज्यपाल ने युवाओं से आह्वान किया कि वे असहमति को नकारात्मक नहीं समझें, बल्कि तर्कसंगत चर्चा को बढ़ावा दें। उन्होंने कहा कि
“हमारे लोकतंत्र की मजबूती इसी में है कि हम भिन्न मतों को सुनें, समझें और जवाब दें—बिना बर्दाश्त किए, बल्कि संवाद के माध्यम से।”
बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का यह बयान भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों, असहमति की स्वीकृति और संवाद की परंपरा को एक बार फिर रेखांकित करता है। ऐसे वक्त में जब समाज में विचारधारात्मक मतभेद बढ़ रहे हैं, उनका यह विचार एक सोचने-समझने लायक हस्तक्षेप है।
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