आदिवासी समाज के 12 लोगों की गैंग ने किया 7 बंदरों का शिकार, बेरहमी से कर दी हत्या

उदयपुर : राजस्थान के कुंभलगढ़ वन अभ्यारण्य क्षेत्र में वन्यजीवों की सुरक्षा को झटका देते हुए आदिवासी कथोडी समाज के 12 लोगों की गैंग द्वारा 7 बंदरों की बेरहमी से हत्या का मामला सामने आया है। सायरा थाना क्षेत्र के रींछवाड़ा गांव के जंगलों में इस घटना को अंजाम दिया गया। बंदरों को न केवल मारा गया, बल्कि लोहे के धारदार हाशिए से टुकड़ों में काटकर, उनका मांस कपड़ों की पोटलियों में भर लिया गया।


घटना की जानकारी और कार्रवाई:

जैसे ही हायला रेंज के फॉरेस्टर तुलसीराम मेघवाल को इस जघन्य कृत्य की सूचना मिली, वे तत्काल अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे। स्थिति उस समय तनावपूर्ण हो गई जब आरोपियों ने वन विभाग की टीम को घेरने की कोशिश की।

बाद में बोखाड़ा रेंज से क्षेत्रीय वन अधिकारी जयंतीलाल गरासिया, फॉरेस्टर नारायण सिंह राणावत, और वनरक्षक वीरेंद्र सिंह शेखावत के साथ वन विभाग की अतिरिक्त टीम मौके पर पहुंची।


जब्त किए गए सबूत:

तलाशी के दौरान आरोपियों के पास से बरामद हुआ:

  • बंदरों का मांस

  • शिकार में प्रयुक्त हथियार

  • चार मोटरसाइकिल

सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर बोखाड़ा वन विभाग कार्यालय लाया गया। पूछताछ में उन्होंने बंदरों के शिकार की बात कबूल कर ली।


मुकदमा और सजा:

वन विभाग ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की कड़ी धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर सभी आरोपियों को गोगुंदा न्यायालय में पेश किया। न्यायालय ने सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।


आरोपियों की पहचान:

  • सभी आरोपी ओगणा थाना क्षेत्र के समीजा गांव के निवासी हैं।

  • आरोपियों ने लोहे के तार से बंदरों को फंसाकर शिकार किया।

  • बाद में धारदार हाशिए से टुकड़े किए और मांस को पोटलियों में भरकर ले जाने की तैयारी की जा रही थी।


वन्यजीव सुरक्षा को लेकर अलर्ट:

इस घटना के बाद वन विभाग ने कुंभलगढ़ वन क्षेत्र में अतिरिक्त निगरानी और गश्त तेज कर दी है। क्षेत्र में वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर अलर्ट मोड में टीम तैनात की गई है।


सामाजिक-प्राकृतिक पहलुओं की चिंता:

कथोडी समाज परंपरागत रूप से वन्यजीवों के शिकार पर निर्भर रहा है, लेकिन अब सरकार उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए विभिन्न योजनाएं चला रही है। बावजूद इसके, ऐसी घटनाएं न केवल कानून का उल्लंघन हैं, बल्कि जैव विविधता के लिए भी गंभीर खतरा बन रही हैं।


निष्कर्ष:

यह मामला न केवल वन्यजीव सुरक्षा कानूनों की अहमियत को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि पर्यावरण संतुलन और संरक्षण के लिए सतर्कता कितनी जरूरी है। वन विभाग की तत्परता से मामले में सख्त कदम उठाए गए हैं, लेकिन स्थायी समाधान के लिए जनजागरूकता और सामाजिक पहल भी उतनी ही ज़रूरी है।

Written By

Monika Sharma

Desk Reporter

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