अखिलेश यादव ने स्पष्ट किया कि आगामी विधानसभा चुनाव अगड़ा बनाम पीडीए की लड़ाई होगी। आगरा से उन्होंने यह संकेत दिया कि अब सपा की वैचारिक और सामाजिक लड़ाई का केंद्र यही शहर होगा। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे आगरा को सामाजिक न्याय का प्रतीक बनाएं।
सपा अब रामजीलाल सुमन को दलित चेहरे के रूप में आगे लाकर भाजपा के ‘राणा सांगा’ प्रकरण से उपजे असंतोष को अपने पक्ष में करना चाहती है। पार्टी बाबा साहब अंबेडकर के विचारों को हथियार बनाकर दलित वोटबैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रही है। साथ ही, पार्टी की कोशिश गैर-यादव पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के बीच भी अपनी पैठ बढ़ाने की है।
सपा सांसद सुमन के आवास पर हुए हमले को भी दलित नेता के घर पर हमला बताते हुए प्रचारित किया गया है। इससे सपा यह संदेश देना चाहती है कि पीडीए वर्ग के खिलाफ सत्ता में बैठे लोग शोषण कर रहे हैं।
कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अखिलेश यादव ने साफ निर्देश दिए कि महापुरुषों पर कोई विवादास्पद टिप्पणी न की जाए। उन्होंने कहा,
"इतिहास को इतिहास ही रहने दें, उसमें कई ऐसी बातें हैं जो न हमें पसंद आएंगी और न उन्हें।"
आगरा की 9 विधानसभा सीटों में से अब तक सिर्फ बाह सीट पर सपा का खाता खुला है। पिछले 30 वर्षों में पार्टी यहां तीसरे स्थान पर रही है। हालांकि, 2022 में सपा, कांग्रेस और रालोद के गठबंधन के कारण वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ था और 6 सीटों पर गठबंधन दूसरे स्थान पर रहा।
2024 लोकसभा चुनावों में मिली पीडीए आधारित सफलता को देखते हुए सपा 2027 में भी इसी कार्ड को और धार देकर आगे बढ़ाना चाहती है। अखिलेश यादव ने कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए कहा कि
"अब समय है कि हम सामाजिक न्याय के विचार को जमीन पर उतारें और पूरे प्रदेश में इसका विस्तार करें।"
अखिलेश यादव का आगरा दौरा केवल राजनीतिक नहीं, वैचारिक दिशा में उठाया गया कदम था। पीडीए मॉडल और सामाजिक न्याय के साथ उन्होंने 2027 की चुनावी लड़ाई की नींव रख दी है। अब देखना यह होगा कि क्या सपा इस बार इतिहास बदल पाती है या फिर एक बार फिर वही पुरानी चुनौती सामने खड़ी होगी।
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