सुप्रीम कोर्ट : ने राजस्थान में ओरण भूमि (देवबन) के संरक्षण और निगरानी के लिए राज्य सरकार की समिति को अंतिम मंजूरी दे दी है। इस कमेटी की अध्यक्षता राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जितेन्द्र राय गोयल करेंगे। कोर्ट में केंद्र सरकार ने इस निर्णय की पुष्टि की। इसके साथ ही पर्यावरण सचिव तन्मय कुमार के खिलाफ चल रही अवमानना की कार्यवाही भी समाप्त कर दी गई है।
क्या है ओरण भूमि?
राजस्थान में ओरण या देवबन वह भूमि होती है जो धार्मिक आस्था और पर्यावरणीय संरक्षण दोनों का प्रतीक होती है। यह परंपरागत रूप से सामुदायिक रूप से संरक्षित भूमि होती है, जहां पेड़ों को काटना, शिकार करना या भूमि का अतिक्रमण प्रतिबंधित होता है। यह क्षेत्र जैवविविधता के संरक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार ने कमेटी गठित कर दी है और पूर्व न्यायाधीश गोयल को इसका अध्यक्ष बनाया गया है। कोर्ट ने इस पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि अब ओरण भूमि के संरक्षण को लेकर प्रभावी निगरानी संभव हो पाएगी। साथ ही, कोर्ट ने पर्यावरण सचिव तन्मय कुमार के खिलाफ चल रही अवमानना याचिका को यह कहकर समाप्त कर दिया कि अब वह आवश्यक निर्देशों का पालन कर रहे हैं।
समिति की भूमिका:
ओरण भूमि की पहचान, सीमांकन और रिकॉर्डिंग
अतिक्रमण की निगरानी और रोकथाम
धार्मिक और पारंपरिक भावनाओं की रक्षा
स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में नीति निर्धारण
विशेषज्ञों की राय:
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय राज्य की पारंपरिक भूमि संरक्षण संस्कृति को नया जीवन देगा। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बनने वाली यह समिति ओरण जैसे पारंपरिक संसाधनों की रक्षा करने में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम राजस्थान की पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ओरण भूमि को संरक्षित करने से न केवल जैव विविधता को लाभ होगा बल्कि ग्रामीण समुदायों के सामाजिक-धार्मिक संतुलन को भी मजबूती मिलेगी।
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