वृंदावन : के प्रसिद्ध कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने एक बार फिर अपने आधुनिक और युवा सोच वाले विचारों से चर्चा में आ गए हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर में रील बनाना गलत नहीं है, बल्कि यह आज के समय में आस्था को व्यक्त करने का एक नया तरीका है।
क्या कहा इंद्रेश उपाध्याय ने:
"अगर 100 साल पहले मोबाइल होते तो हमारे पूर्वज भी रील बनाते। मंदिर जाते हुए फोटो डालना या वीडियो बनाना खाने की थाली डालने से कहीं बेहतर है। ये भी एक प्रकार की भक्ति है।"
उन्होंने युवाओं को यह संदेश दिया कि धार्मिक स्थानों पर सोशल मीडिया एक्टिविटी को गलत नजर से नहीं देखना चाहिए, जब तक उसमें श्रद्धा और मर्यादा बनी रहे।
डिप्रेशन और ब्रेकअप को बताया जरूरी:
इंद्रेश उपाध्याय ने युवाओं के जीवन में आने वाली मानसिक समस्याओं पर भी खुलकर बात की। उन्होंने कहा:
"जीवन में डिप्रेशन और ब्रेकअप भी जरूरी हैं। ये हमें मजबूत बनाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण भी कष्टों से गुजरे थे, और उसी ने उन्हें योगेश्वर बनाया।"
आधुनिकता और भक्ति का मेल:
इंद्रेश उपाध्याय का मानना है कि आधुनिकता और भक्ति एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। सोशल मीडिया पर मंदिरों, पूजा और धार्मिक स्थलों की झलक दिखाना एक सकारात्मक कदम है जो युवाओं को धर्म से जोड़ता है।
निष्कर्ष:
इंद्रेश उपाध्याय का यह बयान भक्ति और डिजिटल युग के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास है। जहां कुछ लोग इसे धर्म का व्यवसायीकरण मानते हैं, वहीं उनका कहना है कि यह सच्ची भावना के साथ किया जाए तो यह भी ईश्वर की सेवा है।
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