जयपुर : के एमएम-20 अदालत ने 20 साल पुराने मामले में नरेश मीणा को बरी कर दिया है। यह मामला राजकार्य में बाधा डालने के आरोप से जुड़ा था, जिसमें नरेश मीणा पर देवली-उनियारा विधानसभा उपचुनाव के दौरान अव्यवस्था फैलाने का आरोप था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस ने इस मामले में कोई भी स्वतंत्र गवाह पेश नहीं किया, और यहां तक कि एक भी कॉन्स्टेबल को भी पेश नहीं किया गया।
जज खुशबू परिहार ने नरेश मीणा को बरी करते हुए कहा कि पुलिस की ओर से मामले में कोई ठोस गवाह नहीं पेश किया गया, जिसके आधार पर मामले की पुष्टि की जा सके। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि पुलिस ने पूरी तरह से इस मामले की जांच में लापरवाही बरती और उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया।
यह मामला 20 साल पहले का है, जब नरेश मीणा पर आरोप था कि उन्होंने राजकार्य में बाधा डाली थी। हालांकि, अदालत में यह साबित नहीं हो सका कि आरोप सही थे।
नरेश मीणा, जो इस समय देवली-उनियारा विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं, ने अदालत के फैसले के बाद राहत की सांस ली। उन्होंने इसे न्याय का सही मिलना और कानूनी प्रक्रिया के तहत सच का सामने आना बताया।
अदालत ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, जिसमें गवाहों की कमी और मामले में सही तरीके से दस्तावेज प्रस्तुत करने की आलोचना की गई है। इस फैसले से यह भी साफ हो गया कि पुलिस द्वारा जांच की उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी।
यह मामला न केवल एक व्यक्तिगत मामले का निपटारा है, बल्कि यह भी दिखाता है कि न्याय की प्रक्रिया में पुलिस और प्रशासन के दायित्वों का पालन कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नरेश मीणा के मामले में न्याय मिलने से यह स्पष्ट होता है कि अगर आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत न हों तो अदालत आरोपी को बरी कर सकती है।
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