राजस्थान : की डॉ. सविता बेन अम्बेडकर अंतरजातीय विवाह प्रोत्साहन योजना में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा सामने आया है। जयपुर के कोटखावदा इलाके में एक ऐसे दंपती का मामला उजागर हुआ है, जिनके 2016 और 2017 में दो बच्चे हुए, लेकिन उन्होंने शादी 2022 में रजिस्टर कराई, ताकि योजना के तहत मिलने वाले 10 लाख रुपए का लाभ उठाया जा सके।
यह मामला सुनने में जितना अजीब है, उससे कहीं अधिक चौंकाने वाला है योजना का दुरुपयोग करने वाला पैटर्न। इस केस में सामने आया कि दंपती लंबे समय से साथ रह रहे थे, उनके दो बच्चे भी हो चुके थे, लेकिन जब उन्होंने देखा कि सरकार अंतरजातीय विवाह पर प्रोत्साहन के तौर पर 10 लाख रुपए दे रही है, तो उन्होंने कागजी रूप से शादी कराई और आवेदन कर दिया।
मामले की पड़ताल में यह भी सामने आया कि यह कोई एक-दो मामलों तक सीमित नहीं है। राज्य के विभिन्न जिलों में दर्जनों ऐसे मामले हैं जहां लोग पहले से विवाहित या सहजीवन में रहने वाले हैं, लेकिन योजनागत लाभ के लिए फर्जी इंटरकास्ट मैरिज दिखाकर आवेदन कर रहे हैं।
राज्य सरकार द्वारा संचालित इस योजना का उद्देश्य अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देना है। योजना के अंतर्गत यदि कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति गैर-अनुसूचित जाति के व्यक्ति से विवाह करता है, तो उन्हें 10 लाख रुपए तक की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इसका उद्देश्य समाज में जातिगत भेदभाव को कम करना था, लेकिन अब इसका व्यापक रूप से दुरुपयोग हो रहा है।
अधिकारियों द्वारा दस्तावेजों की गहनता से जांच न करने के कारण ऐसे मामले योजना के नाम पर धोखाधड़ी का माध्यम बन गए हैं। विवाह रजिस्ट्रेशन की तिथि, बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र और स्थायी निवास जैसे दस्तावेजों की सही से मिलान नहीं किया जाता, जिससे फर्जी दंपती भी योजना का लाभ उठा लेते हैं।
अब सवाल यह उठ रहा है कि जब ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, तो सरकार और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग क्या कदम उठा रहा है? क्या इन मामलों में राशि की वसूली होगी? क्या दोषियों पर एफआईआर होगी? अब तक ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं लेकिन ठोस कार्रवाई नदारद है।
राज्य सरकार की योजना भले ही सामाजिक सुधार के उद्देश्य से लाई गई हो, लेकिन मूल्यांकन और क्रियान्वयन में खामियां इसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा रही हैं। जरूरत है कि प्रत्येक आवेदन की डिजिटल वेरिफिकेशन, बच्चों के जन्म प्रमाण-पत्र की क्रॉस-चेकिंग और स्थानीय स्तर पर जांच की जाए ताकि योजना का लाभ सिर्फ वास्तविक पात्रों को ही मिले।
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