जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में साबरमती की तर्ज पर तैयार किए जा रहे द्रव्यवती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट का सपना आठ साल बाद भी अधूरा ही है। लगभग 1700 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी नदी की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं आया है। शहर की प्रमुख नदियों में से एक द्रव्यवती नदी अब भी गंदा, बदबूदार और प्रदूषित पानी समेटे बह रही है।
जयपुर में द्रव्यवती नदी को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए पांच सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाए गए हैं जिनकी कुल क्षमता 170 MLD (मिलियन लीटर प्रतिदिन) है। लेकिन हकीकत यह है कि वर्तमान में केवल 125 MLD पानी ही ट्रीट किया जा रहा है।
यह अंतर न केवल संसाधनों की बर्बादी को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि परियोजना क्रियान्वयन में गंभीर कमियां हैं।
सबसे बड़ी विफलता सुशीलपुरा एसटीपी को लेकर है, जिसकी घोषणा हुए सात साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। इसकी वजह से आसपास के क्षेत्र की सीवरेज द्रव्यवती में बिना ट्रीट हुए ही बहाई जा रही है, जिससे प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है।
नाहरगढ़ की पहाड़ियों से शुरू होकर गोनेर में ढूंढ नदी में मिलने वाली द्रव्यवती नदी 47.5 किमी लंबी है। शहर के अलग-अलग इलाकों की सीवरेज इसी नदी में गिर रही है। कई इलाकों में बदबू इतनी तेज होती है कि स्थानीय निवासी और राहगीर तकलीफ महसूस करते हैं।
सुशीलपुरा, नंदपुरी जैसे इलाकों में सीवरेज लाइनें नदी से नहीं जुड़ीं
कुछ इलाकों में सीवरेज डायवर्जन के कार्य अधूरे
ठेकेदारों द्वारा धीमी गति से काम
प्रशासनिक लापरवाही और नियोजन में खामियां
स्थानीय निवासी बताते हैं कि परियोजना के दौरान कई बार शिकायतें की गईं, लेकिन समाधान नहीं मिला। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जल्द ही ट्रीटमेंट प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, तो यह पर्यावरण और जनस्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
द्रव्यवती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट को लेकर भले ही सरकार ने बड़ी घोषणाएं की हों, लेकिन हकीकत में परियोजना की गति बेहद धीमी है। जब तक अधूरी पाइपलाइनें, अपूर्ण एसटीपी और लचर निगरानी तंत्र दुरुस्त नहीं होते, तब तक द्रव्यवती नदी 'नदी' कम और 'नाले' जैसी ही बनी रहेगी।
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